जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
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भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
अर्थ: हे शिव शंकर भोलेनाथ आपने ही त्रिपुरासुर (तरकासुर के तीन पुत्रों ने ब्रह्मा की भक्ति कर उनसे तीन अभेद्य पुर मांगे जिस कारण उन्हें त्रिपुरासुर कहा गया। शर्त के अनुसार भगवान शिव ने अभिजित नक्षत्र में असंभव रथ पर सवार होकर असंभव बाण चलाकर उनका संहार किया more info था) के साथ युद्ध कर उनका संहार किया व सब पर अपनी कृपा की। हे भगवन भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
भक्त अपने जीवन में पैदा हुई कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने के लिए श्री शिव चालीसा का नियमित पाठ करते हैं। श्री शिव चालीसा के पाठ से आप अपने दुखों को दूर कर भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं। शिव चालीसा का पाठ हमेशा सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद करना चाहिए। भक्त प्रायः सोमवार, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, त्रयोदशी व्रत एवं सावन के पवित्र महीने के दौरान शिव चालीस का पाठ खूब करते हैं।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
सांचों थारो नाम हैं सांचों दरबार हैं - भजन